अभिव्यक्ति

एक आकांक्षा थी, संताप सहने की
दु:-दर्द -पीड़ा झेलने की
दुनिया तो दर्द की मारी है...
उन दिनों दर्द से काफ़ी नजदीकी हो गई थी मेरी
दर्द के लिए अपने को भूल जाना
मंजूर था मुझे
अपने को भुला जाना नही

अपने को भुलाकर किसी को पाना क्या पाना ?
लेकिन सच बताया हूँ आपको
अपने को भुलाने की
कोशिश भी की थी मैंने...
और ये मुझे गंवारा नही हुआ
लोग मेरी चुप्पी पे अंगुलियाँ उठाते रहे
लेकिन...वो शायद नही जानते थे कि....
चुप रहना-बोलने,चीखने और चिल्लाने की
चरम स्थिति है

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